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कविता

राजनीतिज्ञों ने मुझे

श्रीकांत वर्मा


राजनीतिज्ञों ने मुझे पूरी तरह भुला
दिया।
अच्छा ही हुआ।
मुझे भी उन्हें भुला देना चाहिए।

 

बहुत से मित्र हैं, जिन्होंने आँखें फेर
ली हैं,
कतराने लगे हैं
शायद वे सोचते हैं
अब मेरे पास बचा क्या है?
मैं उन्हें क्या दे सकता हूँ?
और यह सच है
मैं उन्हें कुछ नहीं दे सकता।
मगर कोई मुझसे
मेरा "स्वत्व" नहीं छीन सकता।
मेरी कलम नहीं छीन सकता

 

यह कलम
जिसे मैंने राजनीति के धूल-धक्कड़ के बीच भी
हिफाजत से रखा
हर हालत में लिखता रहा

 

पूछो तो इसी के सहारे
जीता रहा
यही मेरी बैसाखी थी
इसी ने मुझसे बार बार कहा,
"हारिए ना हिम्मत बिसारिए ना राम।"
हिम्मत तो मैं कई बार हारा
मगर राम को मैंने
कभी नहीं बिसारा।
यही मेरी कलम
जो इस तरह मेरी है कि किसी और की
नहीं हो सकती
मुझे भवसागर पार करवाएगी
वैतरणी जैसे भी
हो,
पार कर ही लूँगा।

 


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